Kavita / Poem

रावण अमर है। // वीरेंदर भाटिया

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रावण नेअंतिम समयश्री राम से कहामैं देह नहीवृति हूंलालसा हूँलालच हूँहवस हूँमैंने अमर होने का वचन लिया थाअमर हूँदेह को मारतुम रावण के मर जाने की कल्पना मत करनाराम के […]

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किताब-मय और किताबहीन // यतीश कुमार

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कोई किताब-मय हैकोई किताबहीनकोई सोच-सोच कर परेशान हैतो कोई विचारहीन फिर सोचता हूँकि किताबें पेड़ से बनती हैंअलमारी भी पेड़ से ही बनता है बनने के इस क्रम मेंबस जंगल […]

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ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं // कृष्ण बिहारी नूर

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ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहींऔर क्या जुर्म है पता ही नहीं इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैंमेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल हैदूसरा […]

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एक बार जो ढल जाएंगे // अशोक वाजपेयी

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एक बार जो ढल जाएंगेशायद ही फिर खिल पाएंगे। फूल शब्द या प्रेमपंख स्वप्न या यादजीवन से जब छूट गए तोफिर न वापस आएंगे।अभी बचाने या सहेजने का अवसर हैअभी […]

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हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर // कुँवर नारायण

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हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ करअपने अपने घर पहुँचना चाहतेहम सब ट्रेनें बदलने कीझंझटों से बचना चाहतेहम सब चाहते एक चरम यात्राऔर एक परम धामहम सोच लेते कि यात्राएँ […]

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बरख़ास्त // मनमोहन

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फूल के खिलने का डर हैसो पहले फूल का खिलना बरखास्तफिर फूल बरखास्त हवा के चलने का डर हैसो हवा का चलना बरखास्तफिर हवा बरखास्त डर है पानी के बहने […]