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जन-गण-मन / रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’

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मैं भी मरूंगा और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे लेकिन मैं चाहता हूं कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें फिर भारत भाग्य विधाता मरें फिर साधू के काका मरें यानी […]

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लोकतन्त्र का संकट / रघुवीर सहाय

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पुरुष जो सोच नहीं पा रहेकिन्तु अपने पदों पर आसीन हैं और चुप हैंतानाशाह क्या तुम्हें इनकी भी ज़रूरत होगीजैसे तुम्हें उनकी है जो कुछ न कुछ ऊटपटाँग विरोध करते […]